भागीरथी के बहाव को तु सुन रहा सुरक सुरक💐
जानबूझकर मौन होकर तु देख रहा सुरक सुरक 💐
जन्म भुमि भी पहाड बनकर
रो रही थी सिशक शिसक💐
फिर भी तुझै दया न आई
देख रहा सुरक सुरक💐
माधोसिंह तीलु कुफु कि भुमि तूम देख रहे थे सुरक सुरक💐
फिर भी तुझे दया न आई
मोन बनकर देख रहा सुरक सुरक💐
विधाता कि नगरी कैसी विपदा मे आई💐
पहाड़ पुत्रो सच मे उन दुष्टो को शर्म नही आई💐
श्री देव सुमन तेरा हिमालय देख रहा सुरक सुरक💐
वह हिमालय भी विरह ब्यथा मै रो रहा सुरक सुरक💐
सावन के उगे फल फुलो से लदे पेड देख रहे थे सुरक सुरक💐
भुख तीस तेरी मिटाने मे हम भी विरह मे रो रहे थे शिशक शिशक💐
अन्न भुसा पिसा का़ंच मोन होकर दे रहे थे सुरक सुरक💐
वेशर्मी कि हदे पार कर वै
कर रहे थे खुसर फुसर💐
युगो युगो से आज तक देव सुमन जन जन रो रहा शिशक शिशक
युगो युगो तक देव सुमन सब जन मन बोल रहा नमन नमन
25 जुलाई की वह सावन तिथी वीत रही थी सुरक सुरक 💐
सावन कि वह चांदनी रात्रि भी रो रहि थी शिशक शिशक💐
76 वे बलिदान दिवस पर श्रीदेव सुमन जी को शत शत नमन
आपणी या स्वरचित कविता कनी लगी अवश्य बतान👏👏
💐धुल की श्रद्धांजलि💐