Thursday

Vashishth Narayan Singh one of the the Greatest Mathematician

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जिनका लोहा पूरी अमेरिका मानती है। इन्होंने कई ऐसे रिसर्च किए, जिनका अध्ययन आज भी अमेरिकी छात्र कर रहे हैं। हाल-फिलहाल डा वशिष्ठ नारायण सिंह मानसिक बीमारी सीजोफ्रेनिया से ग्रसित हैं।

Vashishth Narayan Singh one of the the greatest Mathematician 


 डा वशिष्ठ नारायण सिंह ने न सिर्फ आइंस्टिन के सिद्धांत E=MC2 को चैलेंज किया, बल्कि मैथ में रेयरेस्ट जीनियस कहा जाने वाला गौस की थ्योरी को भी उन्होंने चैलेंज किया था।
ऐसा कहा जाता है कि अपोलो मिशन के दौरान डा सिंह नासा में मौजूद थे, तभी गिनती करने वाले कम्प्यूटर में खराबी आ गई। ऐसे में कहा जाता है कि डा वशिष्ठ नारायण सिंह ने उंगलियों पर गिनती शुरू कर दी। बाद में साथी वैज्ञानिकों ने उनकी गिनती को सही माना था।
अमेरिका में पढ़ने का न्योता जब डा वशिष्ठ नारायण सिंह को मिला तो उन्होंने ग्रेजुएशन के तीन साल के कोर्स को महज एक साल में पूरा कर लिया था।
14 मार्च को मैथ डे के रूप में मनाया जाता है। मैथ डे मूल रूप से एक ऑनलाइन कम्प्टीशन था, जिसकी शुरुआत 2007 से हुई थी। इसी दिन पाई डे (Pi) भी मनाया जाता है, जिसका उपयोग हम मैथ में करते हैं। मैथ डे पर हम आपको बता रहे हैं एक ऐसे गणितज्ञ के बारे में, जिनका लोहा पूरी दुनिया मानती है। इन्होंने कई ऐसे रिसर्च किए, जिनका अध्ययन आज भी अमेरिकी छात्र कर रहे हैं। हाल-फिलहाल डा वशिष्ठ नारायण सिंह मानसिक बीमारी सीजोफ्रेनिया से ग्रसित हैं। इसके बावजूद वे मैथ के फॉर्मूलों को सॉल्व करते रहते हैं।

डा वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर गांव में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। यह गांव जिला मुख्यालय आरा से 12 किलोमीटर की दूरी पर है।
वशिष्ठ नारायण सिंह ने छठवीं क्लास में नेतरहाट स्कूल में एडमिशन लिया। इसी स्कूल से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और पूरे बिहार में टॉप किया। इंटर की पढ़ाई के लिए डा सिंह ने पटना साइंस कॉलेज में एडमिशन लिया। इंटर में भी इन्होंने पूरे बिहार में टॉप किया।
1960 के आस-पास बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग का नाम पूरी दुनिया में था। तब देश-विदेश के दिग्गज भी यहां आते थे। उसी दौरान कॉलेज में एक मैथमेटिक्स कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। इस कांफ्रेंस में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बार्कले के एचओडी प्रो जॉन एल केली भी मौजूद थे।
कांफ्रेंस में मैथ के पांच सबसे कठिन प्रॉब्लम्स दिए गए, जिसे दिग्गज स्टूडेंट्स भी करने में असफल हो गए, लेकिन वशिष्ठ नारायण सिंह ने पांचों सवालों के सटिक जवाब दिए। उनके इस जवाब से प्रो केली काफी प्रभावित हुए और उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका आने को कहा।
डा वशिष्ठ नाराय़ण सिंह ने अपनी परिस्थितियों से अवगत कराते हुए कहा कि वे एक गरीब परिवार से हैं और अमेरिका में आकर पढ़ाई करना उनके लिए काफी मुश्किल है। ऐसे में प्रो केली ने उनके लिए विजा और फ्लाइट टिकट का इंतजाम किया। इस तरह डा वशिष्ठ अमेरिका पहुंच गए।
वशिष्ठ नारायण सिंह काफी शर्मिले थे, इसके बावजूद अमेरिका के कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में उनकी काफी अच्छे से देखरेख की गई। यही से उन्होंने PhD करके डॉक्टरेट की उपाधी पाई। डा सिंह ने ‘साइकिल वेक्टर स्पेश थ्योरी’ पर शोध कार्य किया और पूरे दुनिया में छा गए।
इस शोध कार्य के बाद डा सिंह वापस भारत आए और फिर दोबारा अमेरिका चले गए। तब इन्हें वाशिंगटन में एसोसिएट प्रोफेसर बनाया गया।
वे वापस भारत लौट आए। तब उन्हें खुद यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के प्रोफेसर डा केली और नासा ने रोकना चाहा, लेकिन वे नहीं माने और भारत वापस आ गए।
1971 में वापस आने के बाद इन्हें आईआईटी कानपुर में प्राध्यापक बनाया गया। महज 8 महिने काम करने के बाद इन्होंने बतौर गणित प्राध्यापक ‘टाटा इंस्टीच्युट ऑफ फण्डामेंटल रिसर्च’ ज्वाइन कर लिया। एक साल बाद 1973 में वे कोलकाता स्थित आईएसआई मे स्थायी प्राध्यापक नियुक्त किए गए।

When most of us are striving hard to get a visa for USA this man came back to his mother land way back in 1972 to serve it.

Journey?Traveled a lot in journey of his life from a typical undeveloped village in Bihar to USA, village primary school to Netarhat, Science College Patna and then University of California, Berkley.The mathematician who challenged works of Great Scientist Albert Einstein.

1961: Passed matriculation from Bihar Board

1961: Admitted to the prestigious Science College, Patna

1963: Went to University of California, Berkley to study Mathematics under Prof. John L. Kelley

1963 – 1969: Pursued special MSc in Mathematics.

1969: Got PhD from University of California, Berkley, USA

1969: Joined NASA as an Associate Scientist Professor in Washington DC, USA

1969 – 1972: Remained in NASA

1972: Returned to India

1972: Joined as a Lecturer in Indian Institute of Technology (IIT), Kanpur.

1972 – 1977: Joined as a lecturer in IIT Kanpur, Tata Institute of Fundamental Research (TIFR), Bombay and Indian Statistical Institute (ISI), Kolkata.

1977: shows symptom of Mental illness, Schizophrenia, admitted to the mental hospital at Ranchi, then Bihar, now in Jharkhand.

1977 – 1988:under treatment.

1988- Left home without informing anyone.

1988 – 1992: There was no information about him.

1992-(Feb. Month): He was found in a poor condition in Siwan, Bihar.

At Present-Staying in Home,under treatment.

This man needs some respect not for his brain but for his zeal to serve his mother land. Not many are blessed with this kind of attitude. The center and state government has hardly taken a note of his health.

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He Deserve......!!!
 
 

Wednesday

International Kite Festival Uttarayan, Gujraat - Must See

 

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International Kite Festival in Gujarat – Uttarayan

Uttarayan is celebrated every year on 14th January, known as Makar Sankranti in other parts of north India, and Pongal in Tamil Nadu, and continues on the 15th.

The festival of Uttarayan is a uniquely Gujarati phenomenon, when the skies over most cities of the state fill with kites from before dawn until well after dark. The festival marks the days in the Hindu calendar when winter begins turning to summer, known as Makar Sankranti or Uttarayan. On what is usually a bright warm sunny day with brisk breezes to lift the kites aloft, across the state almost all normal activity is shut down and everyone takes to the rooftops and roadways to fly kites and compete with their neighbors.

Kites of all shapes and sizes are flown, and the main competition is to battle nearby kite-flyers to cut their strings and bring down their kites. For this, people find their favored kite-makers who prepare strong resilient kite bodies with springy bamboo frames and kite-paper stretched to exactly the right tension. Lastly, the kites are attached to a spool (or firkin) of manja, special kite-string coated with a mixture of glue and glass to be as sharp as possible for cutting strings of rival kites. Production of kites and kite supplies can be seen on the streets of Ahmedabad beginning in November, to get ready for Uttarayan, and nowhere more so than in Patang Bazaar, the special kite market that appears in the old city. For the week preceding the festival, it is open 24 hours a day for all kite lovers to stock up for the festivities.

Parents who normally find their children hard to get out of bed for school will find them setting the alarm for 5 am on 14th Jan., to get up and start flying kites in the ideal pre-dawn wind. The atmosphere is wonderfully festive, as whole families gather on the rooftop, special foods like laddoos , undhyu or surati jamun are prepared for eating over the course of the day, and friends and neighbors visit each other for group kite-flying fun. Often people look out for which of their friends has the optimum terrace for kite flying and many will congregate there. This leads to many social gatherings that would not otherwise occur, as one person's brother's friends meet their classmate's cousins, because they have all gathered on the rooftop of the same mutual friend. People often find themselves marking time by Uttarayans: "I met you three Uttarayans ago, right?" is a not uncommon phrase. At night, kite fighters send up bright white kites to be seen in the darkness, and skilled flyers will send aloft their tukkals with strings of brightly lit lanterns in a long line leading back down to the rooftop. From early morning to late at night, Uttarayan provides lots of fun and beautiful sights to remember for a long time.

Since 1989, the city of Ahmedabad has hosted the International Kite Festival as part of the official celebration of Uttarayan, bringing master kite makers and flyers from all over the world to demonstrate their unique creations and wow the crowds with highly unusual kites. In past years, master kite makers from Malaysia have brought their wau-balang kites, llayang-llayanghave come from Indonesia, kite innovators from the USA have arrived with giant banner kites, and Japanese rokkaku fighting kites have shared the skies with Italian sculptural kites, Chinese flying dragons, and the latest high-tech modern wonders. A master kite maker and famous kite flyer Rasulbhai Rahimbhai of Ahmedabad trains of up to 500 kites on a single string have come to be a classic attraction. Almost every known variety of kite can be seen in the skies over Sardar Patel Stadium in Ahmedabad, from box kites to high-speed sport kites, from windsocs and spinsocs to hand-painted artistic kites.

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Haan Maine Gandhi Ko Mara Aur Mujhe Garv Hai

"मैंने गाँधी को क्यों मारा"? नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान 


{इसे सुनकर अदालत में उपस्तित सभी लोगो की आँखे गीली हो गई थी और कई तो रोने लगे थे एक जज महोदय ने अपनी टिपणी में लिखा था की यदि उस समय अदालत में उपस्तित लोगो को जूरी बना जाता और उनसे फेसला देने को कहा जाता तो निसंदेह वे प्रचंड बहुमत से नाथूराम के निर्दोष होने का निर्देश देते }

नाथूराम जी ने कोर्ट में कहा --सम्मान ,कर्तव्य और अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमे अहिंसा के सिधांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है. मै कभी यह नहीं मान सकता कि किसी आक्रामक का शसस्त्र प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्याय पूर्ण भी हो सकता है. प्रतिरोध करने और यदि संभव हो तो ऐसे शत्रु को बलपूर्वक वश में करना मै एक धार्मिक और नेतिक कर्तव्य मानता हु.


मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे, या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक, मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनके बिना काम चलाये. वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे. महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे.

गाँधी ने मुस्लिमो को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सोंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया. गाँधी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओ की कीमत पर किये जाते थे जो कांग्रेस अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दंभ भरा करती थी. उसीने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर पकिस्तान को स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया. मुस्लिम तुस्टीकरण की निति के कारण भारत माता के टुकड़े कर दिए गये और 15 अगस्त 1947 के बाद देश का एक तिहाई भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गया. नेहरू तथा उनकी भीड़ की स्विकरती के साथ ही एक धर्म के आधार पर राज्य बना दिया गया. इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई सवंत्रता कहते है किसका बलिदान ? जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी के सहमती से इस देश को काट डाला, जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया. मै साहस पूर्वक कहता हु की गाँधी अपने कर्तव्य में असफल हो गया. उन्होंने स्वय को पकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया.

मै कहता हु की मेरी गोलियां एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी, जिसकी नीतियों और कार्यो से करोडो हिन्दुओ को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला ऐसे कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा उस अपराधी को सजा दिलाई जा सके इसलिए मैंने इस घातक रास्ते का अनुसरण किया .............. 


मै अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा, जो मेने किया उस पर मुझे गर्व है.


मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के इमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्यांकन करेंगे

जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीछे से ना बहे तब तक मेरी अस्थियो का विश्लन मत करना



{यह जानकारी अधिक से अधिक लोगो तक पहुचने के लिए SHARE करे और अमर शहीद नाथूराम गोडसे जी को श्रधांजलि अर्पित करे }